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रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय ने इस बार तो हद कर दी, पढ़ें क्‍या है कारनामा

जबलपुर। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में नियमित विद्यार्थियों के लिए परीक्षा नियम हैंए लेकिन स्वाध्यायी परीक्षा को लेकर कोई नियमावली ही नहीं तय है। विद्यार्थी किस्तों में परीक्षा दे रहे हैं एक-दो नहीं पांच-दस साल लंबे अंतराल के बाद परीक्षा देकर डिग्री पूरी कर रहे हैं। इस वजह से परीक्षा को लेकर विसंगति पैदा हो रही है।

नियमों का पेच फंसने से मामला अधर में अटका

ताजा मामला एमए अर्थशास्त्र का आया है, जिसमें 18 से ज्यादा विद्यार्थियों ने फाइनल की परीक्षा में प्रीवियस का पेपर हल किया। उनका मूल्यांकन भी हुआ और पास हो गए, लेकिन परीक्षा विभाग में रिजल्ट घोषित करते वक्त यह खामी पकड़ में आ गई। जिसके बाद नतीजों को रोक दिया गया। दो साल से विद्यार्थी परीक्षा परिणाम घोषित करवाने के लिए चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन नियमों का पेच फंसने की वजह से मामला अधर में अटका हुआ है।

यह है मामला

स्वाध्यायी विद्यार्थियों के लिए परीक्षा समय सीमा तय नहीं है इसलिए कई विद्यार्थी एक-दो या दस साल तक का अंतराल रखकर परीक्षा देते हैं जैसे पहले साल प्रथम वर्ष की परीक्षा दी। उसके बाद पेपर देना भूल गए या कोई अन्य वजह से पेपर नहीं दिया। बाद में पांच-दस या 15 साल बाद एकाएक विद्यार्थी अधूरी पढ़ाई को पूरा करने परीक्षा में शामिल होता है। ऐसा ही कुछ दो साल पहले एमए अर्थशास्त्र के विद्यार्थियों के साथ हुआ।

प्रथम वर्ष की परीक्षा देने के काफी साल बाद फाइनल की परीक्षा देने के लिए आनलाइन फार्म भरा। एमपी आनलाइन के पोर्टल पर फाइनल के आवेदन में प्रीवियस के दो पेपर प्रदर्शित हुए। विद्यार्थियों ने भी बिना सोच विचार किए आवेदन में प्रीवियस के जो दो पेपर पहले दे चुके थे उन्हें ही भरा और परीक्षा दे दी। ये परीक्षा में पास भी हो गए। जब रिजल्ट जारी होने के समय बाबू ने काउंटर फाइल जांची तो मामला उजागर हुआ। परीक्षा नियंत्रक डा.रश्मि मिश्रा ने परिणाम को रोकने का फैसला किया। इस मामले में विभाग प्रमुख से भी रायशुमारी की जा रही है ताकि मामले का निराकरण हो सके।

इसीलिए हो रही समस्या-

परीक्षा नियंत्रण प्रो.रश्मि मिश्रा ने कहा कि नियमित की तरह ही स्वाध्यायी परीक्षार्थियों के लिए नियम होने चाहिए। परीक्षा उत्तीर्ण करने की समय सीमा तय हो ताकि विद्यार्थी निश्चित अवधि में डिग्री पूर्ण कर सके। पांच-दस साल के अंतराल में परीक्षा देने से कई व्यवस्था खराब होती है। परीक्षा का पैटर्न, कोर्स में बदलाव होता है जबकि विद्यार्थी को पुराने स्कीम से ही परीक्षा देनी होती है। पिछले साल एमए इतिहास में भी कई विद्यार्थियों के परिणाम रोके गए थे इनका मामला भी एमए अर्थशास्त्र के विद्यार्थियों जैसा ही था। इस बार अर्थशास्त्र के जिन विद्यार्थियों के परिणाम रोके गए है उस बारे में डीन कला संकाय से सलाह मांगी गई है। उनकी राय के बाद कुछ प्रक्रिया बढेगी। इसके अलावा स्वाध्यायी परीक्षा के लिए नियमावली तय करने के लिए बतौर परीक्षा नियंत्रक मेरे द्वारा प्रस्ताव बनाकर प्रशासन को भेजा जा रहा है।

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