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आगामी विधानसभा चुनावों में मालवा-निमाड़ में खो गए बुनियादी मुद्दे

 इंदौर। एक तरफ राजनीति तेजी से करवट बदल रही है तो दूसरी तरफ जनता भी सजग हो रही है। चुनाव हमेशा मुद्दों पर लड़े जाते रहे हैं लेकिन मालवा निमाड़ में वर्ष 2023 का विधानसभा चुनाव इस सदी का ऐसा पहला चुनाव होगा जिसमें कोई बड़ा मुद्दा नजर नहीं आ रहा। वर्ष 2003 के चुनाव में बिजली और सड़क दो बड़े मुद्दे जनता के सामने थे। भाजपा ने इन्हीं दो मुद्दों को नाव बनाकर 10 वर्ष के सत्ता के वनवास को खत्म किया था।

पिछले बीस वर्षों में चुनाव धीरे-धीरे मुद्दा विहीन हो चले हैं। अब न सड़कें मुद्दा हैं न बिजली कटौती समस्या। फसलों का मुआवजा, गरीबी रेखा से नीचे जीवन करने वालों की परेशानी और स्वास्थ्य जैसे मुद्दे चुनाव को प्रभावित नहीं कर रहे। इस बार का चुनाव न लहर के बीच लड़ा जा रहा है न मुद्दों पर। वे मुद्दे जो किसी समय सत्ता बदलने का माद्दा रखते थे समय के साथ अब गुम हो चले हैं।

2003 में बिजली, सड़क प्रमुख मुद्दे थे

वर्ष 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में बिजली और सड़क मुख्य मुद्दे थे। प्रदेशभर में जनता बिजली कटौत्री से त्रस्त थी। सड़कों की स्थिति को लेकर कहा जाता था कि महाराष्ट्र, गुजरात से मध्य प्रदेश में प्रवेश करेंगे तो सड़क ही बदहाली खुद आपको बता देगी कि आप अब मप्र में हैं। विधानसभा चुनाव इन्हीं दो मुद्दों को लेकर लड़ा गया। मुद्दों को लेकर यह जनता का आक्रोश था कि दिग्विजयसिंह की 10 वर्ष की सत्ता उखड़ गई।

वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव आते-आते बिजली और सड़क के मुद्दे धीरे-धीरे अपना असर खोने लगे। केंद्र की अटल ज्योति योजना का प्रदेश सरकार को खासा लाभ मिला। इसके बाद वर्ष 2013 में चुनाव में रामलहर का असर विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनाव में साफ नजर आया। सड़क, पानी, बिजली जैसे मुद्दे बहुत पीछे छूट गए। किसानों की नाराजगी और उपज का सही मूल्य भी मुद्दा नहीं रहा।

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