पौधे को संरक्षण करने का है उद्देश्य
नेचर क्लब की हेड डा. दिप्ति संकत बताती है कि अक्सर गार्डन में विदेशी पौधे ही देखने को मिलते हैं जो बाहर के देश से आते है।एमपी बायोडायवर्सिटी बोर्ड के इस कान्सेप्ट का उद्देश्य स्थानीय पौधे को संरक्षण करना है। वाटिका तैयार करने से पहले मैं सिलेबस के अनुसार नर्सरी से वैसे चुनिंदा पौधे लेकर आई हूं जो रेयर हैं और छात्रों के लिए नए हैं।
एक पौधे से दस पौधे बनाएंगे
डा. डिप्टी संकत ने बताया कि जब ये पौधे अच्छे से बड़े हो जाएंगे। तब छात्राएं और समूह प्रमुख मिलकर पौधे का प्रचार भी करेंगे। जिसमें छात्राएं एक पौधे से दस पौधे बना कर उसे खुद से सेल भी करेंगे। हर रोज छात्राें को पौधे के बारे में बताया जा रहा है। रेड डाटा किताब के माध्यम से छात्राओं को अपने ही देश के पौधे को श्रेणीबद्ध करना उसके वैल्यू, फायदे और इस्तेमाल के तरीके सीख रहें हैं।
क्यूआर कोड स्कैन करके पढ़ सकेंगे डिटेल्स
नेचर क्लब और बाटनी विभाग के छात्राएं हफ्ते में छह घंटे इन पौधों के साथ बिताते हैं। जिसमें उनका ध्यान रखना, पुन: वृक्षारोपण, पानी देना और उसकी और जानकारी इक्ट्ठा करना शामिल है। छात्रों ने बताया कि जब ये पौधे आएं थे तब इनके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, लेकिन समय बिताते बिताते और इंटरनेट की सहायता से इनकी कीमत समझ आ रही है। उन्होंने आगे बताया कि सभी पौधे के ऊपर जल्द ही क्यूआर कोड लगाए जाएंगे, जिसे स्कैन करने के बाद कोई भी छात्राएं इसकी जानकारी ले सकेंगे।
दुर्लभ पौधे औषधीय महत्व के कारण जाने जाते हैं
– अचिरांथिस अस्पेरा इस पौधे का कामन नाम अपामार्ग है। यह अस्थमा ब्लीडिंग, ब्रोंकाइटिस, जहरीले जंतु के काटने पर इस्तेमाल किया जाता है।
– एबुटिलों इंडिकम को खेरती या अतिबाला भी कहते हैं। इस औषधीय पौधे का इस्तेमाल पीलिया, बवासीर, घावों और अल्सर में किया जाता है।
– जिंगीबेरेसी एक हर्ब है, जो मेडिसिन, फूड, कास्मेटिक और परफ्यूम इंडस्ट्री में इस्तेमाल होता है।
– अडूसा के पत्ते, जड़ें, फूल और छाल का इस्तेमाल सर्दी-खांसी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस के इलाज में किया जाता है।
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