भोपाल। दिल्ली में दिसंबर 2012 में हुए निर्भया कांड के 11 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस घटना के विरोध में देशभर में आवाज उठी। तब सभी राज्यों के पुलिस प्रमुखों ने यह भी तय किया था कि महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराध में सजा की दर (कंविक्शन रेट) बढ़ाने के लिए साक्ष्य संकलन पर विशेष सतर्कता और संसाधन बढ़ाए जाएंगे। इसके बाद भी सुधार नहीं दिख रहा है।
पुलिस मुख्यालय के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में जुलाई 2022 से जून 2023 के बीच महिलाओं के विरुद्ध 6359 अपराधों में न्यायालय में सुनवाई हुई, जिनमें 1548 मामलों (24 प्रतिशत) में ही आरोपितों को सजा हो सकी। बाकी में आरोपित बरी हो गए। यह आंकड़े महिलाओं के विरुद्ध होने वाले सभी प्रकार के अपराधों के हैं।
इस संबंध में पुलिस मुख्यालय के अधिकारियों ने बताया कि गैर चिह्नित यानी कम गंभीर अपराधों में कई बार फरियादी ही बदल जाते हैं। गवाह मुकर जाते हैं। घटना के संबंध में दिए गए अन्य प्रमाण भी साबित नहीं हो पाते, जिससे न्यायालय से दोषसिद्ध नहीं हो पाते।
पुलिस मुख्यालय की सीआइडी शाखा ने प्रदेश में सभी पुलिस अधीक्षकों को इस संबंध में कई बार पत्र भी लिखा है कि साक्ष्यों का संकलन इस तरह से किया जाना चाहिए जो न्यायालय में प्रमाणित हो सकें।
हालांकि, प्रदेश में सभी तरह के अपराधों की बात करें तो गंभीर अपराधों में 1185 में न्यायालय ने निर्णय (वर्ष 2023 नवंबर तक) दिया, इनमें 882 मामलों में दोषसिद्ध हुए। 565 मामलों में 121 अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा हुई। छह में 10 अपराधियों को मृत्युदंड न्यायालय ने दिया। इस तरह 74 प्रतिशत अपराधों में दोषसिद्ध हुआ।
महिलाओं के विरुद्ध चिह्नित (गंभीर) अपराधों में सजा की दर लगभग 70 प्रतिशत है, पर अन्य अपराधों में यह कम रही है। इसकी एक वजह यह भी है कि कई बार फरियादी ही बदल जाते हैं या फिर गवाह मुकर जाते हैं। – प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (महिला सुरक्षा)।
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.