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युवा रचनाकार ही मोड़ेंगे हमारी सोच का धार-ए-रुख

भोपाल। इश्क- मोहब्बत में डूबे शेर और उर्दू साहित्य पर वरिष्ठ साहित्यकारों की राय को जानने का मौका शनिवार को गांधी भवन में मिला। मप्र उर्दू अकादमी की ओर से ‘नई हवाओं का मौजूं-ए-गुफ्तगू क्या है’ के अंतर्गत कलम से मंच तक के तहत मुशायरा और सेमिनार का आयोजन शाम को मोहनिया सभागार में किया गया।

दो सत्रों में हुआ कार्यक्रम

कार्यक्रम दो सत्रों पर आधारित था। प्रथम सत्र में सेमिनार के तहत वक्तागण के रूप में डा. मोईद रशीदी, अलीगढ़ एवं कमर जहां, बहराईच शामिल रहे। डा मोईद रशीदी ने कहा कि नई पीढ़ी ही में कोई बड़ा रचनाकार पैदा होगा, जिसके नाम से ये दौर पहचाना जाएगा। नई पीढ़ी बहुत ऊर्जा है। जरूरत इस बात की है कि वो साहित्यिक सिद्धांतों से समझौता न करे। कमर जहां ने कहा कि कानून साजी और उनको सफलता के साथ निष्पादन सरकारी विभाग के जिम्मे है, लेकिन सामाजिक स्तर पर हमारी सोच के धार-ए-रुख मोड़ने का काम हमारे रचनाकार ही कर सकते हैं। हमारे रचनाकार ऐसा साहित्य रचें, जो समाज में उपस्थित प्राचीन परंपराओं और समाज के विकास में रुकावट बनने वाले तत्वों को चिन्हित कर सके। इस सत्र का संचालन रिजवानउद्दीन फारूकी ने किया।

दूसरे सत्र में अखिल भारतीय मुशायरा आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता मोईद रशीदी ने की। कार्यक्रम के अंत में डा. नुसरत मेहदी ने सभी श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।

इन अशआरों को मिली श्रोताओं की भरपूर सराहना

इतना आसां नहीं लफ्जों को गजल कर लेना

शोर को शेर बनाने में जिगर लगता है

– डा मोईद रशीदी, अलीगढ़

मैं तेरे ख्याब वापस कर रहा हूं

मिरी आंखों में गुंजाइश नहीं है

– अबरार काशिफ, अमरावती

सूखते पेड़ से पंछी का जुदा हो जाना

ख़ुद-परस्ती नहीं अहसान-फरामोशी है

– आशु मिश्रा, बरेली

मैं रो पड़ूंगा बहुत भींच के गले न लगा

मैं पहले जैसा नहीं हूं, किसी का दुख है मुझे

– कमर अब्बास कमर, दिल्ली

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