Breaking News in Hindi
ब्रेकिंग
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर डब्ल्यूओएस ने किया शक्ति उत्सव आयोज। विधान परिषद के बजट सत्र 2025-26 के अंतर्गत बजट लाईव। भारतीय नौसेना का जहाज कुठार श्रीलंका के कोलंबो पहुंचा। कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और किसान प्राण, केंद्रीय कृषि मंत्री। इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री से संरक्षणवाद को छोड़कर उपभोक्ता हितों को प्राथमिकता देने का आग्रह किया,पीय... PM Modi ने बागेश्वर धाम की पर्ची निकाल दीं, धीरेंद्र शास्त्री बोले। विधान सभा बजट सत्र 2025-26 का चौथा दिन। मात्र 250 रुपए जमा करने पर आपको मिलेगा 78 लाख रुपए तक! CM योगी ने विधानसभा में शिवपाल यादव पर कसा तंज। देश की पहली दुनिया की 5वीं नाइट सफारी विकसित हो रही, प्रदेश वासियों को नाइट सफारी की मिलेगी सौगात,जा...

सामने आए वो 5 कारण, जिनके चलते बीजेपी का 400 सीट का आंकड़ा रह गया दूर

दो महीने पहले शुरू हुए लोकसभा चुनाव के रिजल्ट आज आ गए हैं। हालांकि, चुनाव आयोग की ओर से अभी तक फाइनल आंकड़ें सामने नहीं आए हैं। इतना ही नहीं इस बार की सरकार बनाने के लिए बीजेपी को अपने सहयोगी दल की मदद लेनी पड़ी है, लेकिन उनका 400 पार का नारा पूरा नहीं हो पाया है। अब सवाल ये है कि बीजेपी से आखिर चूक कहां हो गई है। आइए जानिए इन 5 कारणों को जिनकी वजह से बीजेपी का 400 पार का सपना अधुरा रह गया है।

बीजेपी क्यों बहुमत के आंकड़े से दूर रह गई?
1. RSS का नहीं मिला साथ- बीजेपी के वोटरों को बूथ तक लाने में RSS की अहम भूमिका रही है। इस बार के चुनाव में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने चुनाव के बीच में कहा था कि जब हम कमजोर थे तो RSS की जरूरत थी। आज हम खुद सक्षम है। पॉलिटिकल पंडितों का मनना है कि यह बयान बीजेपी के विरोध में गया और RSS के जुड़े लोगों को बुरा लगा। उन्होंने इस चुनाव में बढ़-चढ़ कर भाग नहीं लिया। इसका खामियाजा महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश में बीजेपी को हुआ।

2. 400 के पार का नारा नहीं हुआ पूरा- इस बार बीजेपी और पीएम मोदी की तरफ से 400 पार का नारा दिया गया था। हालांकि ये नारा बीजेपी का ये नारा पूरा नहीं होता हुआ दिख रहा है। शायद कहीं ना कहीं कांग्रेस और ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल राजनीतिक पार्टी दलित वोटरों को यह समझाने में कामयाब रही कि अगर बीजेपी को 400 सीटें मिलेंगी तो हम संविधान बदल देंगे। इसका मतलब है कि दलितों और ओबीसी को मिलने वाला आरक्षण खत्म हो जाएगा। इतना ही नहीं इस वजह से इसका बड़ा नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ा है। उत्तर प्रदेश में BSP का वोट बैंक मायवती से हटकर सपा और कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में चला गया।

3. वोटों का ध्रुवीकरण नहीं होना- पिछले दो चुनावों की बात करें तो हिन्दु और मुस्लिम वोटों का जबरदस्त ध्रुवीकरण देखने को मिला था। कहीं ना कहीं इस बार ये देखने को नहीं मिला। इसका नुकसान सीधे बीजेपी को हुआ है। बीजेपी को उत्तर प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र में इसका बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है।

4. सांसदों का टिकट नहीं काटना- बीजेपी में पीएम मोदी से वोटरों को कोई दिक्कत नहीं थी लेकिन उन्हें अपने क्षेत्र के सांसदों से नाराजगी जरूर थी। दो बार से जीत रहे सांसदों को फिर से टिकट दिया गया। जनता में उनको लेकर नाराजगी थी कि वो मोदी के नाम पर जीत तो जाते हैं लेकिन काम नहीं करते हैं। इस बार फिर से पार्टी की ओर से जब टिकट दिया गया तो यह नाराजगी बढ़ गई। इसके चलते भी कई उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा है। दिल्ली में पार्टी ने अपने 6 सांसदों का टिकट काटा और रिजल्ट सबके सामने है।

5. स्थानीय मुद्दों को दरकिनार करना- बीजेपी ने इस बार अपने चुनावी एजेंडे में स्थानीय मुद्दों को दरकिनार किया। प्रधानमंत्री विकसित राष्ट्र और तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने का नारा देते रहे। इससे आम जनता अटैक्ट्र नहीं हुई। बीजेपी ने उम्मीदवार के चयन में भी गलती की। कई ऐसे उम्मीदवार को टिकट दिया गया, जिनको लेकर क्षेत्र में भारी नराजगी थी। वे अब चुनाव हार गए हैं।

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.