ग्वालियर: भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज व्रत रखा जाता है। इसे बड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कजरी तीज में स्त्रियां शिव-शक्ति की पूजा कर नीमड़ी माता की आराधना करती हैं। सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए यह व्रत सुहागिन महिलाओं द्वारा किया जाता है। वहीं अगर यह व्रत कुंवारी लड़कियों द्वारा किया जाता है तो उन्हें मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। मान्यता है इस व्रत से दांपत्य जीवन में प्रेम और समृद्धि बनी रहती है। साथ ही संतान और परिवार की खुशहाली का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन रात में चांद की पूजा करने का विशेष महत्व है।
पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत एक सितंबर की रात 11 बजकर 50 मिनट पर हो रही है। अगले दिन दो सितंबर को रात आठ बजकर 49 मिनट पर यह तिथि समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार इस साल कजरी तीज दो सितंबर को मनाई जाएगी। पूजा का शुभ मुहूर्त: कजरी तीज के दिन यानी दो सिंतबर को सुबह सात बजकर 57 मिनट से लेकर नौ बजकर 31 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त है। साथ ही रात को नौ बजकर 45 मिनट से लेकर 11 बजकर 12 मिनट तक पूजा का शुभ समय रहेगा।
कज़री तीज पूजा विधि
पूजा स्थल को साफ करके वहां एक चौकी पर लाल रंग या पीले रंग का वस्त्र बिछाएं। इसके बाद माता पार्वती और भगवान शिव की मूर्ति स्थापित करें। आप चाहें तो यह मूर्ति, मिट्टी से स्वयं बना सकती हैं। इसके बाद शिव-गौरी का विधिपूर्वक पूजा करें। माता गौरी को सुहाग के 16 सामग्री अर्पित करें। साथ ही भगवान शिव को बेलपत्र, गाय का दूध, गंगा जल और धतूरा अर्पित करें। इसके बाद शिव-गौरी के विवाह की कथा सुनें। रात्रि में चंद्रोदय होने के बाद चंद्र देव की पूजा करें और हाथ में चांदी की अंगूठी और गेहूं के दाने लेकर चंद्रदेव को जल का अर्घ्य दें। पूजा समाप्त होने के बाद किसी सौभाग्यवती स्त्री को सुहाग की वस्तुएं दान करके उनका आशीर्वाद लें और व्रत खोलें।
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