पूजन विधि
पंडित रामजीवन दुबे ने बताया कि चन्द्रोदय व्यापिनी महालक्ष्मी अष्टमी व्रत के साथ माता लक्ष्मी की पूजा में फूल, फल और मीठे पकवान का भोग लगाया जाता है। इस दिन सबसे पहले प्रात:काल 16 बार पानी अपने ऊपर गडुआ डालकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद व्रत का संकल्प लें। 16 प्रकार के पकवान बनाकर मिट्टी के हाथी पर विराजमान महालक्ष्मी की 16 दीप जलाकर पूजा-पाठ एवं कथा, हवन, आरती के बाद महालक्ष्मी एवं चन्द्र देवता को अर्घ्य देकर अपना व्रत खोलें। कच्चे सूत में 16 गठान लगाकर पीले रंग से रंगकर दूर्वा के साथ उस गड़े को बांधा जाता है। व्रत के अगले दिन 16 गांठों वाला गड़ा तिजोरी में रखें। महालक्ष्मी जी को पीला वस्त्र पहनाकर पूजा के बाद उस वस्त्र से चीर निकालकर अपने साड़ी के पल्लू में बांधती हैं, ताकि परिवार में सुख, समृद्धि, संतान की दीघार्यु, मान-सम्मान लक्ष्मी से भरपूर रहे।
व्रत का शुभारंभ कई जगहों पर भाद्रपद शुक्ल पक्ष राधा अष्टमी दिन से प्रारंभ कर दिया जाता है, जिसका समापन 16वें दिन यानी आश्विन कृष्ण अष्टमी के दिन होता है। महालक्ष्मी का व्रत सुहागवती स्त्रियां करती हैं। इसकी पूजा सार्वजनिक रूप से इकट्ठा होकर करती हैं।
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