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नींबू कटा, छीटें निगम के अधिकारियों पर उड़े

नींबू भले ही स्मार्ट सिटी कंपनी कार्यालय परिसर में कटा लेकिन इसके छीटें चार किमी दूर नगर निगम कार्यालय में बैठे अधिकारियों तक उड़ गए। यह बात अलग है कि आला अधिकारी इन छीटों को नजर अंदाज कर रहे हैं। जो भी हो नींबू कांड ने यह तो साबित कर ही दिया कि इंदौर नगर निगम में इन दिनों सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। अंदर ही अंदर कुछ तो है जिसे बाहर लाने के लिए नींबू काटा गया। ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए नींबू काटने वाले को तो कंट्रोल रूम अटैच कर दिया गया, लेकिन उसके द्वारा लिखे गए पत्र पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। सवाल तो यह भी है कि आखिर निगम में ऐसा क्या चल रहा है कि नींबू काटना पड़ा। दो धड़ों में बटे इंदौर नगर निगम के कर्मचारी इस नींबू कांड के बाद सहमे सहमे से हैं।

भारी पड़ गई रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलाने की कोशिश

तुलसीराम सिलावट के बारे में कहा जाता है कि वे न काउ से दोस्ती न काउ से बैर वाले नेता है, लेकिन कितनी ही सावधानी बरतो, राजनीति में दुश्मनी तो हो ही जाती है। अब जब चुनाव सिर पर हैं तो सारे नेता पुरानी दुश्मनी भूलकर दुश्मन को मनाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसी ही एक कोशिश पहलवान को भारी पड़ गई। रिश्तों पर वर्षों से जमी बर्फ पिघलाने की कोशिश करते हुए वे पुराने राजनीतिक दुश्मन के परिवार से मिलने उनके घर जा पहुंचे। उम्मींद थी कि थोड़े बहुत गिले शिकवे के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा और दुश्मनी खत्म हो जाएगी, लेकिन हुआ इसका ठीक उलट। सामने वाले ने ऐसे तेवर दिखाए कि इन्हें देखने के बाद पहलवान ने उल्टे पैर लौटने में ही भलाई समझी। पहलवान ने फिलहाल दुश्मन को दोस्त बनाने का विचार छोड़ दिया है।

राजनीति में जितने मुंह उतनी बात

भाजपा की पांचवी सूची ने राजनीतिक पंडितों के मुंह बंद कर दिए हैं। विधानसभा क्षेत्र तीन, पांच और महू को लेकर लोग अपने-अपने हिसाब से दावे कर रहे थे। हर किसी का अपना अंदाज था। किसी ने उम्र का हवाला देकर बाबा को बाहर का रास्ता दिखा दिया था तो कोई उषा ठाकुर को धार से चुनाव लडवाने पर आमदा था। किसी का कहना था कि तीन नंबर से तो निशांत खरे का टिकट तय हो गया है। गोलू शुक्ला की दावेदारी को लेकर कहा जा रहा था कि पार्टी ने उन्हें पहले ही आयडीए का उपाध्यक्ष बना उपकृत कर दिया है। पार्टी उनके नाम पर विचार करेगी ही नहीं, लेकिन सूची जारी होते ही राजनीतिक पंडितों की बोलती बंद हो गई। तीनों ही नामों ने पंडितों को चौका दिया। हालांकि तीन दिन पहले से इंदौर के तीनों नाम इंटरनेट मीडिया पर जमकर वायरल हो रहे थे।

चुनाव से पहले हो मजदूरों की बल्ले-बल्ले

चुनाव जो करवाए वह कम है। 32 साल से अपने हक के लिए भटक रहे मजदूरों को इस बात का अंदाजा ही नहीं था कि सरकार चुनाव से ठीक पहले उनकी बातों को इतनी गंभीरता से लेगी। वे तो समझ रहे थे कि इस बार भी उनके हिस्से में घुड़की आएगी और हर बार की तरह सिर्फ आश्वासन मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जाते-जाते सरकार ने गंभीरता दिखाई और मंत्री परिषद की बैठक में ताबड़तोड़ मजदूरों को ब्याज सहित भुगतान का प्रस्ताव पास कर दिया। अब मजदूरों को उम्मींद है कि 17 नवंबर को होने वाले मतदान से पहले उन्हें उनका भुगतान मिल ही जाएगा। चुनाव में किसे क्या मिलेगा और सरकार किसकी बनेगी यह तो 3 दिसंबर को आने वाले परिणाम ही बताएंगे लेकिन इतना जरूर है कि यह चुनाव हुकमचंद मिल के हजारों मजदूरों को बहुत कुछ दे गया है।

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